पाठको, आपको ज्ञात ही होगा कि हमारे शरीर के पाचन तंत्र का एक मुख्य अवयव लिवर होता है। लिवर एक अंग और ग्रंथि दोनों है। यह सैकड़ों महत्वपूर्ण शारीरिक कार्य करता है जो मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह पेट के दाहिने-ऊपरी हिस्से में डायाफ्राम के नीचे स्थित होता है, और मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, जो पित्त (Bile) का निर्माण करती है। पित्त (Bile) हीपेटिक डक्ट द्वारा गॉल ब्लैडर में पहुंच कर संचित होता रहता है। यहां से Bile डक्ट द्वारा आँतों में पहुँचकर भोजन के पाचन में सहायक होता है।
आँतों में भोजन के पाचन से प्राप्त भोज्य पदार्थों के सूक्ष्म रूप को पोर्टल वैन द्वारा अवशोषित कर लिवर में ही पहुँचाया जाता है। लिवर में ही सभी भोज्य पदार्थों के रस का मेटाबॉलिज्म संपन्न होता है, जिससे शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन, फैट, और कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण, संचय, और उत्सर्जन होता है। इस कार्य के लिए लिवर में अनेकों एंजाइम्स का उपयोग होता है, ये एंजाइम्स भी लिवर स्वयं निर्मित करता है।
अतः हम जो भोजन ग्रहण करते हैं वह हमारे रक्त में एवम् अन्य अंगों तक लिवर से होकर ही गुजरता है, एवम् प्रसंस्कृत होता है। इस तरह शरीर का पोषण पूरी तरह लिवर पर ही निर्भर है, अतः यह हमारे जीवनीय अंगो (Vital Organ) में से एक महत्वपूर्ण अंग है।
हमारे शरीर के विभिन्न अंगों में जिस तरह विकृति, एवम् बीमारियां होती हैं, उसी तरह लिवर में भी विभिन्न तरह के विकार या बीमारियां हो सकती हैं। उन्ही में से एक है फैटी लिवर डिसीज।
आइए जानते हैं क्या है फैटी लिवर डिसीज?
इस बीमारी के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह क्या समस्या है, फैटी लिवर की स्थिति में लिवर में अत्यधिक मात्रा में वसा का जमाव हो जाता है। जिससे लिवर का आकार बड़ा हो जाता है, सूजन आ जाती है। इससे लिवर के ऊतकों को क्षति पहुंचती है, और लिवर के सामान्य कार्य में अवरोध उत्पन्न होने लगता है। फैटी लिवर के कारणों के आधार पर इसे दो प्रकारों से जाना जाता है…..
- एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिसीज…
लिवर की इस समस्या का कारण अत्यधिक शराब सेवन है। ऐसे में रोगी शराब का सेवन जारी रखता है तो उसके लिवर को अत्यधिक क्षति हो सकती है, लिवर खराब भी हो सकता है - नॉन एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिसीज…
पिछले कुछ वर्षों में यह पाया गया है, कि बड़ी संख्या में ऐसे रोगी हैं जो बहुत कम शराब पीते हैं या शराब नहीं पीते हैं, लेकिन फिर भी उनके लिवर में अतिरिक्त वसा का जमाव हो रहा है। अतः शराब के सेवन न करने पर भी अन्य कारणों से फैटी लिवर हो रहा है, इस विकार को नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज (NAFLD) के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार के फैटी लिवर से लिवर में सूजन (सूजन), लिवर स्कारिंग (सिरोसिस), लिवर कैंसर, लिवर की विफलता और मृत्यु भी हो सकती है। आजकल नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। विभिन्न अध्यनों का निष्कर्ष है कि लगभग 5 से 20 प्रतिशत तक भारतीय नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज से पीड़ित हैं।
क्यों होती है नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज?
नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज हर उम्र के पुरुषों एवं महिलाओं को हो सकती है। बच्चों से लेकर बुजुर्गो सभी को यह समस्या हो सकती है।
नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज के प्रमुख कारण हैं….
वजन का बढ़ना
अत्यधिक वसा युक्त भोजन
अधिक कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन
सुस्त जीवन शैली
मधुमेह आदि।
इन सभी में मोटापा एवं मधुमेह नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिजीज के बड़े कारण माने जाते हैं। मोटापा और मधुमेह जिस तेजी से बढ़ रहे हैं उससे लगता है कि, आने वाले वर्षों में फैटी लिवर डिज़ीज मौत का एक प्रमुख कारण बन सकता है।
फैटी लिवर आमतौर पर निम्नलिखित चरणों के माध्यम से आगे बढ़ता है:
साधारण फैटी लिवर
सूजन के साथ फैटी लिवर (NASH या नॉन-अल्कोहिलक स्टेटोहेपेटाइटिस के रूप में जाना जाता है
फैटी लिवर जिसमे लिवर की स्कार्रिंग हो या लिवर सख्त हो जाये (जिसे लिवर सिरोसिस भी कहा जाता है।
ऐसी फैटी लिवर डिज़ीज जो कि मोटापे से सम्बन्धित होती है, इसका प्रमुख कारण इन्सुलिन रेजिस्टेंस को माना जाता है। इंसुलिन रेजिस्टेंस का संबंध अनेक दूसरी जीवन शैली संबंधित बीमारियों जैसे डायबिटीज टाइप 2, बीपी, हृदय रोग पैरालिसिस एवं पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से भी है। जब कोई व्यक्ति जरूरत से ज्यादा खाना खाता है एवं शारीरिक व्यायाम नहीं करता तो ग्रहण की गई अतिरिक्त कैलोरीज़ चर्बी के रूप में लिवर में इकट्ठी होने लगती हैं। यह अतिरिक्त चर्बी (फैट) लिवर की कार्यक्षमता को प्रभावित करने लगती है एवं इंसुलिन रेजिस्टेंस को और बढ़ाने लगती है। इंसुलिन रेजिस्टेंस बढ़ने से फैटी लिवर से ग्रसित मरीज को डायबिटीज, बीपी एवं हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है।
वहीं लिवर में मौजूद अतिरिक्त चर्बी लिवर में सूजन पैदा करने लगती है जिसे ठीक करने के लिए लिवर में फाइब्रोसिस होने लगती है। जो धीरे धीरे लिवर सिरोसिस जैसी जानलेवा बीमारी का रूप ले लेती है। यही नहीं अतिरिक्त चर्बी लिवर में कैंसर का कारण भी बन सकती है।
डायबिटीज के 60 से 70 प्रतिशत लोगों में फैटी लिवर डिज़ीज पाई जाती है।
मोटे लोगों में भी लगभग 60 से 70 प्रतिशत लोगों में फैटी लिवर डिज़ीज पाई जाती है।
दुर्भाग्य से मोटे बच्चों में भी फैटी लिवर देखा जा रहा है, जो इन बच्चों को आगे चलकर डायबिटीज एवं हार्ट अटैक का कारण बनता है।
फैटी लिवर डिज़ीज के लक्षण
आम तौर पर इसके कोई लक्षण नहीं दिखते, जब तक कि लिवर बहुत ज्यादा खराब न हो जाए या सिरोसिस न हो जाए।
फैटी लिवर डिज़ीज होने का खतरा मोटापे एवं डायबिटीज के मरीजों को अधिक होता है। अतः ऐसे मरीजों को विशेषज्ञ की निगरानी में नियमित जाँच कराते रहना चाहिए, ताकि गंभीर समस्या होने से पहले ही लिवर डिज़ीज का पता चल सके।
फैटी लिवर डिज़ीज का निदान (जाँचें):
फैटी लिवर डिजीज (Fatty Liver Disease) की जाँचों के लिए, आपके चिकित्सक खून की जाँच, इमेजिंग टेस्ट (जैसे अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, एमआरआई) और कभी-कभी लिवर बायोप्सी (Liver Biopsy) कराने की सलाह दे सकते हैं। आजकल फाइब्रो स्कैन नामक एडवांस जाँच भी उपलब्ध हैं।
जाँच प्रक्रिया:
- खून की जाँच:
लिवर फंक्शन टेस्ट (Liver Function Tests) नामक खून की जाँच और अन्य जाँचों के माध्यम से लिवर की स्थिति और कार्य क्षमता का पता किया जाता है। - Fib4 स्कोर टेस्ट:
यह एक फॉर्मूला होता है जिसमें खून में की जाने वाली जाँचें SGOT, SGPT और प्लेटलेट काउंट का उपयोग होता है। यह स्कोर लिवर खराब होने व लिवर में फाइब्रोसिस होने की स्थिति को दर्शाता है। - फाइब्रो स्कैन:
फाइब्रो स्कैन लिवर की जाँच का सबसे सटीक टेस्ट मन जाता है। जिसमें लिवर में बढ़ी हुई चर्बी की मात्रा और फाइब्रोसिस की स्थिति का सटीकता से पता चलता है। - इमेजिंग टेस्ट:
अल्ट्रासाउंड: यह जाँच लिवर में वसा की मात्रा और लिवर के आकार का पता लगाने के लिये कि जाती है। इसे अल्ट्रा सोनोग्राफी भी कहा जाता है।
सीटी स्कैन: अल्ट्रासाउंड द्वारा लिवर की स्थिति स्पष्ट न होने पर लिवर की विस्तृत और अधिक स्पष्ट तस्वीरें प्राप्त करने के लिए इस जाँच की जरूरत पड़ती है।
एमआरआई: यह और अधिक उन्नत जाँच है, जिससे लिवर में वसा और फाइब्रोसिस (निशान) का पता लगाया जाता है। - लिवर बायोप्सी: यदि आवश्यक हो, तो लिवर का एक छोटा सा नमूना निकालकर माइक्रोस्कोप से जाँच की जाती है।
फैटी लिवर डिज़ीज का उपचार:
इसका उपचार रिस्क फैक्टर्स को कम करना और जीवन शैली में सुधार करने से आरंभ होता है जैसे…
वजन का नियंत्रण, वसा रहित भोजन करना, भोजन में कम कार्बोहाइड्रेट लेना, सक्रिय जीवन शैली अपनाना, व्यायाम करना, एवं मधुमेह नियंत्रण रखना आदि शामिल हैं।
पांच से 10 प्रतिशत वजन कम करने से लिवर में फैट की मात्रा घटने लगती है। 10 प्रतिशत से अधिक वजन कम करने से फाइब्रोसिस की स्थिति भी सुधरने लगती है।
मधुमेह में उपयोग की जाने वाली नई दवाइयाँ जैसे GLP 1 एगोनिस्ट एवं SGLT2 इन्हिबिटर आदि मरीज का वजन कम करने में सहायक होती हैं और फैटी लिवर को कम करती हैं।
मधुमेह का प्रभावी नियंत्रण भी फैटी लिवर डिज़ीज को कम करने में सहायक होता है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं, बीमारी से बचाब बीमारी के उपचार से बेहतर होता है। अतः फैटी लिवर डिज़ीज से बचे रहते के लिए हमें वजन और मधुमेह को नियंत्रण में रखना चाहिए। कम वसा और कम कार्बोहाइड्रेट वाला संतुलित आहार लेना चाहिए। साथ ही नियमित व्यायाम करना चाहिए।
डॉ. सुशील जिंदल
