सोशल मीडिया का स्वास्थ्य पर प्रभाव

सोशल मीडिया (एसएम) सोशल नेटवर्किंग साइट्स और एप्लीकेशन को कहा जाता है, जहां पर व्यक्तिगत एवं सार्वजनिक प्रोफाइल या अकाउंट बनाए जा सकते हैं। एवं विभिन्न संपर्कों का नेटवर्क बनाया जा सकता है। इस नेटवर्क जरिए सोशल मीडिया हमें ऑडियो वीडियो, एवं लिखित रूप में बातचीत और संवाद करने की सुविधा प्रदान करता है। उदाहरण के तौर पर यूट्यूब, व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर (x), इंस्टाग्राम, टेलीग्राम आदि विभिन्न ऑनलाइन सेवाएं। इनकी सहायता से हम कितनी भी दूर रहते हुए अपनों एवं अन्य लोगों से जुड़े रह सकते हैं। यह बात और है कि इनकी कुछ खास सुविधाओं जैसे वीडियो, ऑनलाइन गेम आदि की लत लगने से लोग परिवार एवं वास्तविक दुनिया से दूर होकर सोशल मीडिया के आभासी जगत में खोते जा रहे हैं।

सोशल मीडिया जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है। इसने संपर्क और संवाद को सरल एवं बहुत तेज बना दिया है। यह अपनी व्यापकता और तेज गति के कारण सूचनाओं और संवादों को पलक झपकते ही दुनिया में कहीं भी भेज सकता है और फैला सकता है। इसकी सहायता से जितनी सरलता एवं तेजी से उपयोगी जानकारियां साझा की जा सकती हैं, उतनी सरलता एवं तेजी से गलत एवं भ्रामक सूचनाएं तथा जानकारियां भी फैलाई जा सकती हैं। गलत जानकारियों से समाज में झगड़े और दंगे आदि का खतरा हो सकता है, वहीं स्वास्थ्य संबंधी गलत जानकारी रोगियों के लिए जानलेवा हो सकती है।

हाल के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक आबादी के 3.81 अरब लोग कम से कम एक सोशल नेटवर्किंग साइट पर अपना खाता बनाए रखते हैं, एवं दुनिया भर के इंटरनेट उपयोगकर्ता सोशल नेटवर्किंग साइट पर प्रतिदिन औसत 144 मिनट बिताते हैं।

सोशल मीडिया की ताकत उपयोग के आधार पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की हो सकती है। अतः हम यहां सोशल मीडिया के स्वास्थ्य पर प्रभाव की चर्चा करेंगे।

आज के जमाने में हमारे संवाद दोनों तरीके प्रत्यक्ष और सोशल मीडिया प्रचलित हैं। सोशल मीडिया पर होने वाले संवाद सरल एवं तेज तो होते हैं, पर इसमें भावनात्मक अभिव्यक्ति अस्पष्ट होती है। सोशल मीडिया पर होने वाली वायरल खबरें जीवन में उथल पुथल के साथ अनचाही प्रतिस्पर्धा, देखा देखी वाली अपेक्षाएं और तनाव को बढ़ाती हैं। यह तनाव हमारी न्यूरोनल गतिविधि और जीन अभिव्यक्ति में स्थायी परिवर्तन को ट्रिगर कर सकती है। हमारे मस्तिष्क में हाइपोथैलेमस एक न्यूरोएंडोक्राइन रिले केंद्र के रूप में कार्य करता है, जो तनाव की प्रक्रिया को नियोजित करता है। अतः हमारा एंडोक्राइन सिस्टम और नर्वस सिस्टम साथ मिलकर
हमारे मूड, विकास, मेटाबॉलिज्म, होमियोस्टेसिस और हमारे अंगों के काम को नियंत्रित करते हैं। अतः सोशल मीडिया से उत्पन्न तनाव हमारे मस्तिष्क से होते हुए सारे शरीर को प्रभावित कर सकता है।

फैबोन ज़ोगांग ने अपने लेख “ट्विटर कंटेंट में साइकोमेट्रिक संकेतकों के दैनिक उतार-चढ़ाव” में बताया है कि, सोशल मीडिया उपयोग का पैटर्न भी सर्केडियन लय से प्रभावित होता है। सर्केडियन ताल (Circadian Rhythm) एक प्राकृतिक, दैनिक चक्र है जो शरीर की जैविक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है। यह लय हमें बताती है कि कब सोना है और कब जागना है, और यह हमारे शरीर के तापमान, हार्मोन, पाचन और अन्य शारीरिक कार्यों को भी प्रभावित करती है।
यह लय मस्तिष्क में एक आंतरिक घड़ी द्वारा नियंत्रित होती है, जिसे सुप्राचियास्मेटिक न्यूक्लियस (SCN) कहा जाता है।
प्रकाश, अंधेरा, भोजन, तनाव और तापमान जैसे कारक सर्केडियन लय को प्रभावित करते हैं। अतः सोशल मीडिया और न्यूरोएंडोक्राइन सिस्टम एक दूसरे को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित करते हैं। इसलिए सोशल मीडिया के प्रभाव को समझना हमारे समग्र स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।

व्हाट्सएप मैसेंजर सबसे लोकप्रिय मैसेजिंग एप्लिकेशन है, इसके दुनिया भर में 2 अरब से अधिक उपयोगकर्ता हैं। बहुत लोकप्रिय होने के कारण, कई विवादों और आलोचनाओं के रूप में एक कीमत भी चुकानी पड़ती है, अतः यह कुछ देशों में प्रतिबंधित है। व्हाट्सएप को समय-समय पर इसे और अधिक सुरक्षित और यूजर फ्रेंडली बनाने के लिए अपडेट किया जाता है, जैसे कि गलत जानकारी के प्रसार को प्रतिबंधित करना, मैसेज फॉरवर्ड पर सीमा लगाना और इसे एंड टू एंड एन्क्रिप्शन के साथ और अधिक सुरक्षित बनाना।

इंटरनेट के लगभग 80% उपयोगकर्ता स्वास्थ्य जानकारी ऑनलाइन ढूंढते हैं। विशेष रूप से, आहार, पोषण, व्यायाम, बीमारी के लक्षण, उपचार की जानकारी आदि ऑनलाइन ढूंढना कुछ सामान्य उदाहरण हैं।

मधुमेह दुनिया भर में सबसे आम बीमारियों में से एक बन गया है। वेनवेन कोंग ने अपने अध्ययन में बताया कि टिकटॉक पर मधुमेह संबंधित ठीकठाक जानकारियां उपलब्ध हैं, लेकिन यह अधूरी है। इसलिए, मधुमेह से संबंधित अधूरी जानकारी के स्रोत के रूप में टिकटॉक का उपयोग करते समय सावधानी बरतनी चाहिए। इसके अलावा, मधुमेह के लिए ब्लू सर्कल जैसे फेसबुक समूह हैं, जो मधुमेह से पीड़ित लोगों को मधुमेह देखभाल पर प्रश्न, उत्तर और टिप्पणियों के साथ बातचीत करने का अवसर देते हैं।
सोशल मीडिया पर स्वास्थ्य संबंधित जानकारियों पर ब्लॉग, एवं ऑडियो वीडियो आदि कंटेंट प्रस्तुत करने वाले ऑनलाइन इनफ्लुएंसारों की संख्या में काफी इजाफा हो रहा है।
ब्लैकमोर ने अपने अध्ययन में बताया कि, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म प्रजनन एंडोक्रिनोलॉजी और बांझपन विशेषज्ञों के बीच लोकप्रिय हो रहे हैं, और बढ़ती बांझपन दरों के कारण प्रजनन संबंधी वेब स्पेस अधिक सक्रिय हो रहे हैं। क्वास एएम एवं उनकी टीम के अनुसार सोशल मीडिया पर भ्रामक और गलत जानकारियां चिंता का विषय हो सकती हैं, लेकिन सोशल मीडिया वास्तविकता है और रहने वाली है। इसलिए चिकित्सकों को निष्क्रिय पर्यवेक्षक न बनते हुए, ऑनलाइन बातचीत में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए और सटीक जानकारी प्रदान करना चाहिए

सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रभाव

स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव के लिए सोशल मीडिया का उपयोग एक प्रभावी मध्यस्थ के रूप में किया जा सकता है।
इसके लिए सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों जैसे, व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि पर नेटवर्क के माध्यम से चिकित्सक, केयरटेकर, एवं समान बीमारियों से पीड़ित कई मरीज आपस में जुड़े रह सकते हैं। इस नेटवर्क के जरिए चिकित्सक की निगरानी में उचित सलाह, गुणवत्ता पूर्ण जानकारियां, संतुलित आहार विहार, व्यायाम, एवं स्वस्थ जीवन शैली अपनाने को प्रेरित करने से संबंधित गतिविधियां एवं बातचीत की जा सकती है। यह बीमारियों के बारे में उचित एवं सटीक जानकारी के साथ सामाजिक अलगाव को दूर करने में मददगार हो सकता है। मरीजों एवं परिजनों को गंभीर परिस्थितियों से निपटने के लिए मनोबल भी प्रदान करता है।
नीचे सोशल मीडिया के सकारात्मक उपयोग कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं…
बचपन में बढ़ते मोटापे की समस्या से निपटने के लिए
राहेल ग्रूवर और उनकी टीम ने मोटापे से पीड़ित बच्चों की माताओं के लिए फेसबुक पर ग्रुप बनाकर काफी सकारात्मक प्रयास किए।
सुंगक्यू पार्क के अनुसार फेसबुक पर यूजर की गतिविधियां उसकी मानसिक स्थिति जैसे डिप्रेशन आदि की स्थिति को प्रकट करती हैं।
फैसल एस मलिक के अध्ययन के अनुसार टाइप 1 मधुमेह वाले किशोरों ने मधुमेह के प्रभावी नियंत्रण और प्रबंधन के लिए अपनी मधुमेह देखभाल टीम के साथ सोशल मीडिया पर जुड़ने की इच्छा व्यक्त की।
वियोलेटा आयोटवा ने अपने अध्ययन में बताया कि विभिन्न शोध और सर्वेक्षण आधारित बीमारियों की वर्तमान जानकारी सोशल मीडिया के जरिए सरलता एवं तेजी से साझा की जा सकती है। अतः सोशल मीडिया कई एंडोक्राइन समस्याओं के बारे में शिक्षण गतिविधियों की आगे की योजना और निष्पादन के लिए एक ठोस आधार प्रदान करता है।
उदाहरणतः एड्रिनल, पिट्यूटरी एवं थायरॉयड विकारों के लिए यूरोपीय रेफरेंस नेटवर्क ऑन रेयर एंडोक्राइन कंडीशंस (एंडो-ईआरएन) जैसे प्रमाणित और प्रतिष्ठित मंचों/संस्थानों का उपयोग करके विकारों एवं लक्षणों की पहचान की जा सकती है।
शारीरिक निष्क्रियता एक वैश्विक चुनौती है, और इसे वैश्विक मृत्यु दर के चौथे प्रमुख कारक के रूप में पहचाना गया है। इसके विपरीत, शारीरिक गतिविधि को हर उम्र और अवस्था में स्वास्थ्य को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए सबसे प्रभावी तरीकों में से एक के रूप में प्रकट किया है।
शारीरिक सक्रियता, व्यायाम आदि कैंसर, उच्च रक्तचाप, टाइप 2 मधुमेह, कोरोनरी हृदय रोग, न्यूरोलॉजिकल विकलांगता और मानसिक विकारों से पीड़ित लोगों को लाभान्वित करता है। हेक्टर जोस ट्रिकास-विडाल एवं उनकी टीम ने अपने अध्ययन में पाया कि फिजिकल फिटनेस इनफ्लुएंसर लोगों ने इंस्टाग्राम के माध्यम से स्वस्थ जीवन शैली का पालन करने के लिए कई व्यक्तियों को प्रेरित और उत्साहित किया है।
जोहाना के. होरे के अनुसार हेल्थ वर्कर्स और इन्फ्लूएंसर्स इंस्टाग्राम पर वजन पर ध्यान केंद्रित किए बिना स्वस्थ जीवन शैली को चित्रित करने के लिए माइंडफुलनेस और संतुलित आहार पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इस प्रकार सोशल मीडिया द्वारा स्वास्थ्य और पोषण संबंधी सांस्कृतिक, समावेशी, और प्रमाणित जानकारी प्रसारित की जाती है।

नकारात्मक प्रभाव

सोशल मीडिया के कई लाभ हैं लेकिन इसके कई संभावित नकारात्मक प्रभाव भी हैं। खासकर युवा लोगों पर, जैसे कार्यक्षमता में कमी, नींद में व्यवधान, निष्क्रियता, सामाजिक अलगाव, साइबरबुलिंग, आत्मघाती विचार और सहानुभूति में कमी सहित प्रतिकूल मानसिक प्रभाव शामिल हैं।
गलत जानकारी का प्रसार हाल का नहीं है यह प्रिंट मीडिया के जमाने से ही है। पर इंटरनेट के विकास ने इसके के प्रसार को तेज, सरल और सस्ता कर दिया है, साथ ही इस पर कोई प्रभावी नियंत्रण भी नहीं है। 2013 में, विश्व आर्थिक मंच ने चेतावनी दी थी कि संभावित ‘डिजिटल जंगल की आग’ जानबूझकर या अनजाने में भ्रामक जानकारी के ‘वायरल प्रसार’ का कारण बन सकती है (विश्व आर्थिक मंच, 2013)।

प्रिंट मीडिया की अपेक्षा सोशल मीडिया और इंटरनेट जानकारियों को प्रसारित करने का सहज, सरल, बहुत तेज, और सस्ता माध्यम होने के कारण हर किसी की पहुंच में है। इसकी यही खूबी इसे नियंत्रण से बाहर होने की ताकत देती है। अतः सोशल मीडिया पर फैलने वाली गलत जानकारियों को रोकना कठिन होता है। कई गलत जानकारियां रेगुलेटरी संस्थाओं द्वारा जब तक प्रतिबंधित की जाती हैं तब तक यह व्यापक स्तर पर लोगों को प्रभावित कर चुकी होती हैं। साथ ही पुराने सोर्स से नष्ट की गई जानकारी कई अन्य नए सोर्सेस से बार बार प्रसारित होती रहती है। जो भ्रम कभी स्थानीय रूप से फैलता था अब वह तेजी से वैश्विक हो सकता है। गलत जानकारी बार बार देखने पर लोग उसे सच मानने लगते और प्रभावित हो जाते हैं। और बड़े स्तर पर इसका व्यवहार और आदत में आने का भी खतरा होता है।

स्वास्थ्य से संबंधित सोशल मीडिया पर देखी जाने वाली आम गलत जानकारी टीकों, संक्रामक रोगों, क्रोनिक बीमारियों और आहार, पोषण और व्यायाम जैसे अन्य विषयों के इर्द-गिर्द घूमती है। आमतौर पर, इस गलत जानकारी का अधिकांश भाग उन व्यक्तियों से आता है जो विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर राय को प्रभावित करने में अत्यधिक सक्रिय होते है। अफवाहें अक्सर साक्ष्य-आधारित जानकारी की तुलना में अधिक लोकप्रियता हासिल करती हैं। सोशल मीडिया आजकल कई बेरोजगार लोगों के लिए कमाई का माध्यम भी बना हुआ है, कई लोग प्रसिद्धि पाने, पैसा कमाने के लिए सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं। इन्हीं में से कई लोग अप्रमाणित, और गलत जानकारियां प्रसारित करने से भी गुरेज नहीं करते। इसलिए बड़े पैमाने पर लोग अक्सर भ्रामक और गलत प्रचारों का शिकार होते रहते हैं।

2012 में प्रसिद्ध पत्रिका “वैक्सीन” द्वारा वैक्सीनेशन में इंटरनेट उपयोग की भूमिका’ के लिए एक विशेष अंक प्रस्तुत किया, जिसमें एंटी-वैक्सीनेशन मूवमेंट और सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों द्वारा उपयोग की जाने वाली कुछ संचार रणनीतियों का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि दुष्प्रभावों के बारे में गलत जानकारी के कारण सरकार या दवा कंपनियों में अविश्वास, वैक्सीनेशन के विरोध का एक प्रमुख कारण है।

लियोंग और उनकी टीम के अनुसार संक्रामक रोग, पुरानी बीमारियों जैसे कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह जैसी अंतःस्रावी बीमारियों, मोटापा और थायरॉयड विकारों पर गलत जानकारी अनजाने में नहीं फैलाई जाती, बल्कि यह वैकल्पिक उपचारो, जड़ी बूटियों, झाड़फूंक आदि अटकलों पर अंधविश्वास के कारण अधिक वायरल होती हैं।

कई बार सोशल मीडिया के साथ, व्यक्ति में आभासी अपेक्षाएं विकसित हो जाती हैं, जो उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।
जैसे कि जीवन से उदासीनता, जो कि सैटिसी ने 2019 में वर्णित किया है।
अकेलापन, जैसा कि ब्लाचनियो एट अल ने 2016 में अपनी शोध में बताया है।
शैक्षिक प्रदर्शन, जैसा कि अल-याफी एट अल ने 2018 में वर्णित किया है।
आत्मविश्वास के कमी, जैसा कि हावी और समाहा ने 2017 में अपनी शोध में बताया है।
कई लोग अपनी शारीरिक छवि को लेकर समाज की नकारात्मक टिप्पणी होने के डर से विभिन्न हार्मोन संबंधी इलाज के लिए गुपचुप रूप से सोशल मीडिया के नुस्खे अपनाने लगते हैं।
रॉयल सोसाइटी फॉर पब्लिक हेल्थ और यूके के यूथ हेल्थ मूवमेंट द्वारा किए गए शोध के अनुसार, इंस्टाग्राम को युवा लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव के मामले में सबसे नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाला एसएम प्लेटफ़ॉर्म माना जाता है।

मस्तिष्क का भावनात्मक सर्किट जटिल है जिसमें मुख्य रूप से प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स, एमिग्डाला, हिप्पोकैम्पस, फ्रंटल सिंगुलेट कॉर्टेक्स और इंसुलर कॉर्टेक्स, साथ ही न्यूरोट्रांसमीटर जैसे डोपामाइन, सेरोटोनिन, नॉरपेनेफ्रिन, मेलाटोनिन और एंडोर्फिन शामिल हैं। मस्तिष्क का एक नेटवर्क है जो खुशी, प्रेरणा और सीखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

डोपामाइन एक न्यूरोट्रांसमीटर है जो न्यूरोलॉजिकल और शारीरिक कामकाज में शामिल न्यूरॉन्स के बीच एक रासायनिक संदेशवाहक है। सभी सुखद अनुभव, एक अच्छा भोजन खाने से लेकर सेक्स करने तक, डोपामाइन की रिलीज का कारण बनते हैं। इसलिए भी, डोपामाइन रिलीज कुछ चीजों की लत लगाने का कारण है, जैसे कि दवाएं, जुआ, खरीदारी और सोशल मीडिया का उपयोग करना।

कुछ लोग जब फेसबुक, स्नैपचैट, इंस्टाग्राम या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के साथ जुड़ते हैं, और एक लाइक, एक रीट्वीट या एक इमोटिकॉन अधिसूचना प्राप्त करते हैं जो ब्रेन रिवॉर्ड प्रणाली को सक्रिय करते हैं और एक डोपामाइन लूप बनाते हैं। इससे डोपामाइन का स्तर बढ़ जाता है । यह खुशी और संतुष्टि का चक्र सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को इसका आदी बनाने के लिए प्रेरित करता है।

चिकित्सा पेशा और सोशल मीडिया

सोशल मीडिया अब दैनिक जीवन का एक आधार है, और चिकित्सा पेशेवर भी इससे अछूते नहीं हैं। चूंकि सोशल मीडिया के नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रभाव हो सकते हैं, इसलिए इसके दुरुपयोग को रोकना महत्वपूर्ण है। भारत में सोशल मीडिया के उचित उपयोग को लागू करने के लिए, राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने चिकित्सा पेशेवरों के बीच आचार संहिता को नियंत्रित करने के नियम दिए हैं

  1. चिकित्सा पेशेवर सोशल मीडिया पर जानकारी और घोषणाएं प्रदान कर सकते हैं, लेकिन जानकारी तथ्यात्मक और सत्यापित होनी चाहिए। यह भ्रामक नहीं होनी चाहिए या रोगी के ज्ञान की कमी का फायदा नहीं उठाना चाहिए।
  2. चिकित्सा पेशेवर सार्वजनिक सोशल मीडिया पर रोगी के उपचार या दवा का पर्चा लिखने से बचें।
  3. चिकित्सा पेशेवरों को सोशल मीडिया पर रोगियों की तस्वीरें या स्कैन छवियां पोस्ट करने से रोकता है क्योंकि यह बाद में सोशल मीडिया कंपनी या आम जनता के स्वामित्व वाला डेटा बन जाता है।
  4. सोशल मीडिया पर चिकित्सा पेशेवरों को अपने सहयोगियों के प्रति पेशेवर व्यवहार एवं चिकित्सा नैतिकता के सामान्य सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।
  5. चिकित्सा पेशेवरों को लाइक एवं फॉलोवर’ खरीदने या उच्च रेटिंग के लिए भुगतान करने या सॉफ्टवेयर प्रोग्राम या ऐप के माध्यम से रोगियों को आकर्षित करना आदि प्रतिबंधित है।
  6. चिकित्सा पेशेवरों को सोशल मीडिया पर रोगियों से प्रशंसापत्र, सिफारिशें, समर्थन या समीक्षा अनुरोध करना या साझा करना प्रतिबंधित है।
  7. चिकित्सा पेशेवरों को किसी भी परिस्थिति में ठीक हुए रोगियों की छवियां, सर्जरी / प्रक्रिया वीडियो या प्रभावशाली परिणाम प्रदर्शित करने वाली छवियां साझा करना प्रतिबंधित है।
  8. चिकित्सा पेशेवरों को आम जनता के साथ शैक्षिक सामग्री साझा करने की अनुमति देता है, लेकिन संचार उनकी विशेषज्ञता तक सीमित होना चाहिए।
  9. चिकित्सा पेशेवरों के पास निजी वेब पेज हैं, तो भी उन्हें उपरोक्त दिशानिर्देशों का पालन करना चाहिए।
  10. चिकित्सा पेशेवरों को सोशल मीडिया पर गरिमा और शालीनता के साथ आचरण करने और मर्यादित रहने की सलाह देता है।
  11. सोशल मीडिया के माध्यम से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोगियों का पीछा करना अनैतिक है।

संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह और अंतःस्रावविज्ञान

अनुभूति मानसिक प्रक्रियाओं के लिए एक शब्द है, जिसमें सोच, ध्यान, भाषा, सीखना, स्मृति और धारणा शामिल है, जो हमें कल्पना करने और स्वस्थ व्यक्ति के रूप में कार्य करने की अनुमति देती है। लोग निर्णय लेते समय अक्सर सामान्य सूचनाओं और अनुमान का उपयोग करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप त्रुटियां हो सकती हैं, जिन्हें संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह कहा जाता है। इस प्रकार, सोशल मीडिया संज्ञानात्मक पूर्वाग्रह का कारण बन सकता है, जो कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे कि एंकरिंग पूर्वाग्रह, उपलब्धता पूर्वाग्रह, पुष्टिकरण पूर्वाग्रह, पश्चदृष्टि पूर्वाग्रह, चूक पूर्वाग्रह, परिणाम पूर्वाग्रह, अति आत्मविश्वास पूर्वाग्रह, सापेक्ष जोखिम पूर्वाग्रह आदि। या पूर्वाग्रह रोगियों और चिकित्सा पेशेवरों दोनों द्वारा निर्णय लेने को प्रभावित कर सकते हैं।

उदाहरण के लिए, एक माता-पिता एक मीडिया रिपोर्ट देखने के बाद जिसमें एक बच्चे को टीकाकरण के बाद ऑटिज्म विकसित होने की बात कही गई है। अपने बच्चे को टीकाकरण करने से इनकार कर सकते हैं, क्योंकि उनके मन में पूर्वाग्रह विकसित हो जाता कि टीकाकरण का दुष्प्रभाव होता ही है।इसी तरह, सोशल मीडिया पर कई बीमारियों के उपचार के संबंध में कई भ्रामक या गलत सूचनाएं उपलब्ध हैं, जो कई बार रोगी को डॉक्टर द्वारा दी गई सलाह पर संदेह करने और गलत निर्णय लेने का कारण बन सकती हैं।

निष्कर्ष

सोशल मीडिया आजकल हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुका है। हमने देखा कि यह बहुत उपयोगी होने के साथ, जीवन पर कई नकारात्मक प्रभाव भी डाल सकता है। अतः सोशल मीडिया का उपयोग बहुत सोच समझकर और सावधानी पूर्वक करना चाहिए।

Authors
Dr. Jaideep khare
Dr. Sanjay kalra
Dr. Sushil Jindal

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